कुछ दूरी तय करने के बाद रवि एक जगह विश्राम के लिए बैठ गया। उसने थैले से पानी की बोतल निकाली, कुछ घूँट पीकर वापस रख दी। थैला पेड़ के सहारे रखकर उसने आरामदायक स्थिति बनाई और सुस्ताने लगा। जिस पहाड़ी पर वह बैठा था, वहाँ से थोड़ी दूरी पर नीचे सड़क का एक मोड़ था।
सुनसान जगह थी। वाहनों की आवाजाही कम थी। कभी-कभार ही कोई दुपहिया या चौपहिया गुजरती। अगर कोई वाहनों की गिनती करे, तो शायद घंटे भर में दहाई तक भी न पहुँचे।
वहाँ एक व्यक्ति अकेला खड़ा था, सामान्य ग्रामीण वेशभूषा में, अपने जीवन की मध्य उम्र में – न उसे युवा कहा जा सकता था, न वृद्ध। शायद आसपास के किसी गाँव का होगा। ऐसी जगह बैठकर, बिना दिमाग पर ज्यादा जोर डाले, जो कुछ सामने दिखे, वह किसी रोचक सिनेमा या घटना से कम नहीं लगता। हालांकि, हर बार जो सामने दिख रहा हो, कोई कहानी बन जाए, ऐसा जरूरी नहीं।
तभी एक टैक्सी वहाँ रुकी। छत पर कुछ सामान बंधा था, और उसमें कुछ और सवारियाँ भी थीं। ड्राइवर ने उम्मीद भरी नजरों से उस व्यक्ति से कुछ पूछा, शायद यह सोचकर कि उसे एक सवारी मिल जाएगी। रवि को ड्राइवर की नजरें तो नहीं दिखीं, क्योंकि उसे टैक्सी का पिछला हिस्सा दिख रहा था। लेकिन अपनी कल्पना से उसने ऐसा अनुमान लगाया। वैसे, उसने ड्राइवर का सवाल भी नहीं सुना। फिर भी, उस व्यक्ति के जवाब से ड्राइवर के सवाल का अंदाजा लगा लिया।
वहाँ खड़े व्यक्ति ने कहा, “नहीं, अभी दो और लोग आने वाले हैं, मैं उनका इंतजार कर रहा हूँ।”
ड्राइवर ने कुछ और बातें कीं, ताकि उसे थोड़ा और समय मिल जाए और वे लोग आ जाएँ, या वह व्यक्ति मान जाए और टैक्सी में बैठने को तैयार हो जाए। लेकिन दूसरी सवारियाँ भी थीं, तो वह कितना इंतजार कर सकता था। टैक्सी आगे बढ़ गई।
रवि का छोटा-सा विश्राम अब पूरा हो चुका था। वह आगे चल पड़ा। 30-35 कदम चलने के बाद उसे याद आया कि उसकी पानी की बोतल पीछे छूट गई थी। वह वापस उसी जगह लौटा, जहाँ सुस्ता रहा था। नीचे सड़क की ओर देखा, वह व्यक्ति अब भी अकेला खड़ा था।
रवि ने अपना थैला उठाया। चलने से पहले सड़क की ओर एक बार फिर देखा। तभी वहाँ एक बस रुकी। वह व्यक्ति उस पर चढ़ा, बस आगे बढ़ गई। – वह व्यक्ति बस का ही इंतजार कर रहा था, जिसका किराया कम होता है। फिर भी, टैक्सी ड्राइवर को बुरा न लगे, इसलिए उसने सीधे मना करने की बजाय ‘दो लोगों’ के इंतजार की बात कही होगी। इस विचार के साथ रवि के चेहरे पर मुस्कुराहट तैर गई।