सोचते सोचते दिन निकला, फिर महीने, फिर साल…
लेकिन हमारे अल्मोड़ा का वही पुराना हाल…
प्रकृति ने दी अद्भुत छटाएं, सुंदर हवाए, काली घटाएं,
प्राचीन मंदिर, ऊँचे भवन, सुंदर अट्टालिकाए।
होली की धूम, खडी होली की थाप,
दशहरे का उत्सव। भव्य पुतलो की छाप,
रामलीला का मंचन, दिवाली की धूम,
गिरजे की घंटियाँ, मस्जिदों की अजान।
यहां पर बसता है दिलो में प्यार
एक बार जो आता है मंत्रमुग्ध हो जाता है पर आए कैसे …
टूटी है सड़क…
पत्थर गिरने का भय है…
गन्दी है बाजार फिसलने का डर है…
कोई होटल सुहाता नहीं …
कोई जेब में आता नहीं …
टॉयलेट इतने गंदे बीमारी का खतरा है …
अरे रुक जाओ सर पर पानी भी टपकता है …
नगर पालिका को ये सब दिखता नहीं है …
वो तो कमाई में मस्त है कोई कुछ करता नहीं है…
प्रशासक कोई आए व्यवस्था वही रहती है….
अंधेर नगरी है सड़ी सब्जी बिकती है…
हमारी सांस्कृतिक विरासत देखने जो आएगा ..
क्या वो चैन से दो दिन भी रह पायेगा…
टूरिस्म को प्रोमोट करने वालो इस शहर को अच्छी बसों से जोड़ दो …
या इन बातो को करना छोड़ दो…
रहने के व्यवस्था हो, खाने को शुद्ध मिले …
परिवहन दुरुस्त हो…
तभी तो लोग आयेंगे…
सुख चैन से रह पाएंगे …
हमारे जनप्रतिनिधि किस काम में खोये है पता नहीं …
फिर से वो इलेक्शन में नजर आयेंगे …
वादे करेंगे भूल जायेंगे …..
देहरादून में बैठ कर कोहराम मचाएंगे …
बड़ी बड़ी योजनाएं बनाएंगे…
लेकिन मूलभूत सुविधाएं नहीं जुटाएंगे…
अरे नेताओ थोडा तो प्यार इस शहर से करो…
कुछ तो काम करो शर्म करो शर्म करो।।