छायावादी कवि स्वर्गीय श्री सुमित्रानंदन पंत का जन्म कौसानी, बागेश्वर जनपद (उत्तराखंड) में 20 मई 1900 को हुआ था। पंडितजी ने आपका नाम गुसाई दत्त रखा गया था। परन्तु पंतजी को अपना यह नाम पसंद नहीं था, अतः उन्होने बदलकर बाद में सुमित्रानंदन रख लिया था। जन्म के कुछ घंटों पश्चात् ही इनकी माँ (सुमित्रा देवी) चल बसी। अतः उनका लालन – पालन दादी ने ही किया।
पंत जी की प्रारंभिक शिक्षा अल्मोड़ा में ही हुई। 1916 में वे काशी आ गए और वहां क्वींस कॉलेज से हाईस्कूल उतीर्ण करने के बाद पंत जी ने इलाहबाद से इंटर तक अध्ययन किया। 1919 में महात्मा गाँधी के सत्याग्रह से प्रभावित होकर अपनी शिक्षा अधूरी छोड़ दी और स्वाधीनता आन्दोलन में सक्रिय हो गए।
पंत जी, प्रकृति की गोद में पैदा होने के कारण, उन्हें प्रकृति से असीम लगाव था। बचपन से ही सुन्दर रचनाएँ लिखा करते थे। उन्हें “चिदम्बरा” के लिये भारतीय ज्ञानपीठ, लोकायतन के लिये सोवियत नेहरू शांति पुरस्कार और हिन्दी साहित्य की इस अनवरत सेवा के लिये पद्मभूषण से अलंकृत किया गया।
पंत जी की प्रमुख कृतियां में वीणा, उच्छावास, पल्लव, ग्रंथी, गुंजन, लोकायतन पल्लवणी, मधु ज्वाला, मानसी, वाणी, युग पथ, सत्यकाम हैं। 28 दिसम्बर 1977 को इलाहाबाद में पंत जी का निधन हो गया था।
(प्रस्तुति: श्री जगमोहन साह लाला बाज़ार अल्मोड़ा)
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