कौसानी विश्व प्रसिद्द पर्यटक स्थलों में से एक है, जो उत्तराखंड में कुमाऊ मंडल के तहसील गरुड़ के अन्दर आता है, . इसका कुछ हिस्सा अल्मोड़ा और कुछ हिस्सा बागेश्वर जिले में आता है. समुद्रतल से लगभग 6200 फीट (1890 मीटर) की ऊंचाई पर बसा कौसानी एक खूबसूरत पर्वतीय पर्यटक स्थल है।
आज हम लाये है यही से आपके लिए ढेर सारी रोचक जानकारिया, अगर आपका यहाँ घुमने आने का प्रोग्राम है तो इस विडियो से आपको जरुरी जानकारियां मिलेंगी, और यदि पहले कभी आये हैं तो ये आपकी यादें ताजा कर देगा,
हेल्लो फ्रेंड्स, मैं आलोक आपका फिर से स्वागत करता हूँ popcornTrip में. और अभी तक आपने चैनल subscribe नहीं किया है वो भी कर लें, हम लातें है आपके लिए पर्यटक स्थलों और विभिन्न यात्राओं से जुडी रोचक जानकारियां
चलिए सफ़र शुरू करते हैं
चीड यानि पाइन वृक्षों के घने जंगल, ट्रेकिंग, शांत व स्वच्छ वातावरण,घाटी में चाय के बगान, दूर पहाडो के बीच उगते सूर्य का नजारा और सबसे महत्वपूर्ण यहाँ से बर्फ से ढके हिमालय के पर्वतो की प्रमुख चोटिया जैसे चौखम्बा, नंदाघुंटी, त्रिशूल, नंदादेवी, नंदाकोट, पंचाचुली आदि का शानदार नजारा हमे खूबसूरत दुनिया में ले जाने के लिए काफी हैं ।
सूर्योदय के समय जब सूर्य की पहली किरण इन पर्वतो पर पड़ती हैं, तब नजारा वाकई में दिल और दिमाग दोनों को मोह लेता हैं ।
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कौसानी का इतिहास बड़ा ही रोचक है | पर्यटन स्थल कौसानी के बारे में यह कहा जाता है कि इस स्थान पर महाभारत काल में कौशिक मुनि ने कठोर तप किया था इसलिए इस स्थान का नाम “कौसानी” रखा गया |
प्रसिद्ध भारतीय कवि , “सुमित्रानंदन पन्त” – जो की सन 1900 में कौसानी में पैदा हुए थे|
तब महात्मा गाँधी जी ने कौसानी को ” भारत का स्विट्ज़रलैंड “ नाम की उपाधि दी थी एवम् उन्होंने “यंग इंडिया” पुस्तक में कौसानी की आलोकिक सौंदर्य और कुमाउं की पहाडियों के बारे में जानकारी देकर कौसानी को पुरे विश्व में प्रसिद्ध कर दिया |
कौसानी कैसे जाएं
देश के अलग-अलग हिस्सों से हवाई, रेल और सड़क मार्ग से कौसानी आसानी से पहुंचा जा सकता है।
यहां का सबसे नजदीकी एयरपोर्ट पंतनगर है। जो कौसानी से 173 किलोमीटर है, वैसे तो एक और एअरपोर्ट पिथोरागढ़ में भी है पर as of now यहाँ से नियमित उड़ान नहीं हैं
यह भारत के अन्य शहरों से अच्छे से जुड़ा हुआ है। एक हैली पैड बैजनाथ में तैयार हैं – लेकिन उसमे अभी निजी अथवा सरकारी दौरे ही होते हैं.
कौसानी का सबसे निकटतम रेलवे स्टेशन काठगोदाम है।
निकटतम रेलवे स्टेशन यह काठगोदाम से 140 किलोमीटर दूर है।
और काठगोदाम देश के प्रमुख शहरों से रेल मार्ग द्वारा सीधे जुड़ा हुआ है। इसके अलावा टनकपुर- बागेश्वर रेल लाइन भी प्रस्तावित है, स्थानीय निवासियों को विश्वास हैं – जल्दी ही भविष्य में बागेश्वर में रेल लाने की परिकल्पना साकार होगी।
इसके अलावा यहां पहुंचने के लिए आप बस, टैक्सी आदि का भी इस्तेमाल कर सकते हैं।
नैनीताल से कौसानी – 115 किमि०,
कौसानी लगभग नैनीताल से 120किमी०,
काठगोदाम से 139 किमी०,
बागेश्वर से 38किमी० और
अल्मोड़ा से 52 किमी० दूर हैं ।
रानीखेत से 58.8 किमि०
दिल्ली से कौसानी की दूरी लगभग 410 किलोमीटर है। आईएसबीटी आनन्द विहार बस अड्डे से भी कौसानी के लिये उत्तराखंड रोडवेज की बसें चलती हैं।
। जब आप काठगोदाम से पहाड़ की सैर करते हैं तो सारी थकान छू मंतर हो जाती है। रास्ते में प्राकृतिक सौंदर्य से लिपटे पहाड़, कलकल की आवाज करती नदियां, और कुछ दुरी तय करने पैर बदलते लैंडस्केप्स, आपका दिल असीम आनंद से भर उठेगा। पता ही नहीं चलता है कि कब कौसानी पहुंच गए।
यहां करीब 70-100 के बीच छोटे-बड़े होटल हैं। सभी श्रेणी के होटल बजट से लेकर एग्जीक्यूटिव हर रेंज के होटल यहाँ मिल जाते हैं। कौसानी के होटल/ रिसोर्ट की जानकारी के लिए आप स्क्रीन में दिख रही वेबसाइट भी विजिट कर सकते हैं, वेबसाइट का लिंक आपको विडियो के नीचे description में मिल जायेगा। यहाँ एक छोटा सा बाजार जहाँ पर कई खाने-पीने के अच्छे रेस्तरा और जरुरत के समान की अच्छी दुकाने हैं । सबसे बड़ी बात यह है कि यहां के लोग बड़े विनम्र है । यह जगह शहरी आपाधापी के विपरीत शांत और लगभग अपनी मूल अवस्था में ही है । कुल मिलाकर शांत वातावरण में अच्छा समय बिताने के लिए कौसानी बिलकुल उपयुक्त स्थान है ।
यहां जाने का सबसे अच्छा समय
यु तो साल में कभी भी गर्मी, जाड़े, बरसात आदि में आप कौसानी विजिट कर सकते है, हर मौसम में आपको यहाँ प्रकर्ति के अलग अलग shades देखने को मिलेगे। गर्मी (मार्च से जून) के समय यहां मौसम काफी खुशगवार रहता है। मार्च-अप्रैल और फिर सितंबर-अक्टूबर के महीने खुले आसमान वाले होते हैं, जिनमें बर्फ से ढके हिमालय के शानदार नज़ारों का खूबसूरती देखि जा सकती है। दिसंबर से फ़रवरी के मध्य तक कौसानी में खूब बर्फ गिरती है। और बरसात के मौसम में झरने, हरियाली, बर्ड watching आदि के लिए एकदम उपयुक्त मौसम हैं। यहाँ आने वाले पर्यटक फिर से यहाँ आने का सपना लिये जाते हैं।
अनाशक्ति आश्रम यहां का एक प्रसिद्ध आश्रम है. वर्ष 1929 में जब गाँधी जी भारत के दौरे पर निकले थे तब अपनी थकान मिटाने को दो दिन के लिए कौसानी भी आये थे । कौसानी घाटी ने उनका मन मोह लिया था । गाँधी जी यहाँ पर चौदह दिन रहे और गीता पर आधारित पुस्तक “अनासक्ति योग ” यहीं नामक लेख लिखा था। अनाशक्ति का अर्थ होता है- ऐसा योगा जिससे आप संसार से अगल होकर पूर्ण रूप से ध्यानमग्न होते हैं। इस आश्रम में एक अध्ययन कक्ष और पुस्तकालय, प्रार्थना कक्ष जहां हर सुबह और शाम प्रार्थना की जाती है।
यहां गांधी जी के जीवन से संबंधित चित्र लगे हैं। यहां रहने वालों को यहां होने वाली प्रार्थना सभाओं में भाग लेना होता है। यहां से चौखंबा, नीलकंठ, नंदा घुंटी, त्रिशूल, नंदा देवी, नंदा खाट, नंदा कोट और पंचचुली शिखर दिखाई देते हैं। प्रार्थना का समय: सुबह 5 बजे और शाम 6 बजे (गर्मियों में शाम 7 बजे)
खूबसूरत पहाडिय़ों और पर्वतों के अलावा कौसानी आश्रमों, मंदिरों और चाय के बगानों के लिए भी जाना जाता है।
कौसानी और आसपास के क्षेत्र में चाय के बागान भी ऐसी हरियाली का आनन्द देते हैं, मानो ईश्वर ने हरा कालीन बिछा दिया हो। चाय बागानों में घूमने के साथ-साथ फैक्ट्रियों में चाय को तैयार होते देख सकते हैं। कौसानी में एक चाय का बागान भी है, जो यहाँ से लगभग छ: किलोमीटर की दूरी पर बैजनाथ की तरफ़ है। यहाँ की चाय बहुत ही खुशबूदार और स्वादिष्ट होती है। बड़ी मात्रा में यहाँ की चाय विदेशों को भेजी जाती है, जिसकी विदेशों में काफ़ी मांग है। आम चाय की तुलना में यहाँ की चाय की कीमत उसकी बेहतर गुणवत्ता के कारण ज़्यादा है।
उत्तरांचल की मशहूर ‘गिरियास टीÓ का उत्पादन यहीं होता है। इसके अलावा जैविक चाय का भी उत्पादन किया जाता है और इस खुशबूदार चाय को संयुक्त राष्ट्र, जर्मनी, कोरिया और ऑस्ट्रेलिया में निर्यात किया जाता है।
यहां बागानों में घूमकर और चाय फैक्टरी में जाकर चाय उत्पादन के बारे में जानकारी प्राप्त की जा सकती है। यहां आने वाले पर्यटक यहां से चाय खरीदना नहीं भूलते।
इसके अलावा यहां का अचार, औषधियां, चोलाई, लाल चावल, शर्बत, जैम और शहद भी मशहूर है। यदि आप कुंमाउनी खाने का स्वाद अपने साथ ले जाना चाहते है तो मुख्य चौराहे के पास बनी दुकानों से मडुए का आटा और गौहत की दाल अपने साथ ले जा सकते हैं। कौसानी शाल (जो की मुख्य चौराहे पैर ही स्थित है) में हाथ से बनी गर्म टोपियां और शाल, कम्बल इत्यादि मिल जाएंगी।
सुमित्रानंदन पंत की स्मृतियों को संजोता राजकीय संग्रहालय
हिन्दी के प्रसिद्ध कवि सुमित्रानंदन पंत का जन्म कौसानी में हुआ था। बस स्टैंड से थोड़ी दूरी पर उन्हीं को समर्पित पंत संग्रहालय स्थित है। जिस घर में उन्होंने अपना बचपन गुजारा था, उसी घर को संग्रहालय में बदल दिया गया है। यहां उनके दैनिक जीवन से संबंधित वस्तुएं, कविताओं का संग्रह, पत्र, पुरस्कार आदि को रखा गया है। समय: सुबह 10.30 बजे से शाम 4.30 तक, सोमवार को बंद
लक्ष्मी आश्रम
यह आश्रम सरला आश्रम के नाम से भी प्रसिद्ध है। सरलाबेन ने 1948 में इस आश्रम की स्थापना की थी। सरलाबेल का असली नाम कैथरीन हिलमेन था और बाद में वे गांधी जी की अनुयायी बन गई थी। यहां करीब 70 अनाथ और गरीब लड़कियां रहती है और पढ़ती हैं। ये लड़कियां पढ़ने के साथ-साथ सब्जी उगाना, जानवर पालना, खाना बनाना और अन्य काम भी सीखती हैं। यहां एक वर्कशॉप है जहां ये लड़कियां स्वेटर, दस्ताने, बैग और छोटी चटाइयां आदि बनाती हैं।
कोट भ्रामरी मंदिर : कोट भ्रामरी मंदिर को भ्रामरी देवी मंदिर और कोट की माई नाम से भी जाना जाता है। यह कौसानी से 20 किमी दूर एक पहाड़ी पर स्थित है। एक प्रसिद्ध दंत कथा के अनुसार ऐसी मान्यता है कि महान भारतीय गुरु आदि गुरु शंकराचार्य गढ़वाल जाने के क्रम में इस जगह पर रुके थे। हर वर्ष अगस्त में यहां विशाल स्तर पर एक मेले का आयोजन किया जाता है, जिसे नंदा अष्ठमी या नंदा राज जाट नाम से जाना जाता है।
सोमेश्वर : कौसानी से 11 किमी दूर बसा सोमेश्वर एक प्रसिद्ध शहर है। यह शहर भगवान शिव के मंदिर के लिए जाना जाता है। इस मंदिर का निर्माण चंद सम्राज्य के संस्थापक राजा सोमचंद ने करवाया था। इस जगह का नामकरण राजा सोम और भगवान महेश्वर के नामों को मिला कर किया गया है।
रुद्रधारी जलप्रपात व गुफाएं कौसानी से 12 किमी दूर कौसानी-अल्मोड़ा मार्ग पर स्थित है। ऐसी मान्यता है कि यह जगह भागवान शिव (रुद्र) और भगवान विष्णु (हरि) से संबद्ध है। सोमेश्वर का शिव मंदिर इस जलप्रपात के करीब ही है।
बागेश्वर: सरयू और गोमती नदी के संगम पर बसा बागेश्वर एक धार्मिक शहर है। ऐसी मान्यता है कि भगवान शिव एक बार इस क्षेत्र में बाघ का भेष धरने आए थे। हिन्दू पौराणिक कथाओं में भी इस शहर का वर्णन मिलता है। कौसानी से 38 किमी दूर स्थित यह शहर हर साल बड़ी संख्या में सैलानियों को आकर्षित करता है। बागेश्वर में हहे बागनाथ मंदिर के समीप सरयू और गोमती नदी का संगम भी होता है। उत्तरायनी मेले का आयोजन यहां हर साल किया जाता है।
activities
ट्रेकिंग : adventure पसंद करने वाले पर्यटक यहां ट्रेकिंग (लंबी पैदल यात्रा) और रॉक क्लाइंबिंग (चट्टानों की चढ़ाई) का आनंद ले सकते हैं। सुंदर धुंगा ट्रेक, पिण्डारी ग्लेशियर ट्रेक और मिलम ग्लेशियर ट्रेक का शुमार भारत के सबसे अच्छे ट्रेकिंग रूट में होता है। इसके अलावा रीडिंग, राइटिंग, बर्ड watching, ट्रैकिंग, विलेज स्टे के लिए ये जगह एकदम उपयुक्त है।
। कौसानी से निकलने के बाद आगे का रास्ता बहुत सुन्दर प्राकृतिक सुंदरता से भरा पड़ा है । रास्ते में कौसानी के चाय के बगान भी नजर आते है जो पहाड़ की ढलान पर हरितमा लिए बड़े ही सुन्दर और व्यवस्थित लगते है । इससे आगे बढ़ tea factory और शाल factory भी आती है, जहाँ से पर्यटक इस स्थान के यादगार स्वरुप उत्तम किस्म की चाय और शाल खरीद सकते हैं। अगर आप खुद ड्राइव कर रहे हो तो ध्यान रखे कि रास्ता में visibility तो अच्छी है पर सामने ढलान से आ रहे वाहन को पास देने के लिए आप कुछ दूर ही सुरक्षित और चौड़ी जगह पर रुक जाएँ।
बैजनाथ : कौसानी से 17 किमी दूर बैजनाथ शहर में स्थित यह मंदिर धार्मिक आस्था का महत्वपूर्ण केन्द्र है। इस नगर की समुंद्रतल से ऊँचाई लगभग 1,130 मीटर (3,707 feet). हैं । 12वीं शताब्दी में निर्मित इस मंदिर का हिन्दू धर्म में खास धार्मिक एंव ऐतिहासिक महत्व है। ऐसी मान्यता है कि शिव और पार्वती ने गोमती व गरुड़ गंगा नदी के संगम पर विवाह रचाया था। बैजनाथ शहर को पहले कार्तिकेयपुर के नाम से जाना जाता था, जो 12वीं और 13वीं शताब्दी में कत्यूरी वंश की राजधानी हुआ करती थी।
कहा जाता हैं की यह मंदिर समूह का निर्माण 1150ई. के आसपास कुमाऊँ के कार्तिकेयपुर के कत्यूरी राजाओ के द्वारा बनवाया गया था और बाद में यह बारहवी और तेरहवी सदी के बीच कुमाऊँ कत्यूरी राजबंश के शासनकाल में राजधानी भी रहा था । बारहवी सदी में निर्मित यह बैजनाथ मंदिर अति प्राचीन होने के साथ-साथ ऐतहासिक और धार्मिक रूप से बहुत महत्वपूर्ण हैं । इन मंदिर समूह में मुख्य मंदिर भगवान शिव का और बाकी मंदिरों में केदारेश्वर, लक्ष्मीनारायण, ब्राम्हणी देवी, गणेश, पार्वती, चंडिका, कुबेर सूर्य आदि के मंदिर हैं । मंदिर परिसर में देखो तो कई जगह प्राचीन मूर्तियां व उनके अवशेष देखे जा सकते हैं । अभी हाल ही में शासन ने पर्यटन को बढावा देने के मकसद से एक झील का निर्माण कराया है जिससे यहाँ की सुन्दरता और अधिक बढ़ गयी है।
आज का सफ़र यही तक, जल्द ही एक और सफ़र पर आपसे मुलाकात होगी, आपके सुझावों व टिप्पणियों का स्वागत है।
धन्यवाद।