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Reading: अखबार से नेटफ्लिक्स तक, एक आम आदमी की जिंदगी
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Almora Online | Explore Almora - Travel, Culture, People, Business > Blog > Contributors > Almora > अखबार से नेटफ्लिक्स तक, एक आम आदमी की जिंदगी
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अखबार से नेटफ्लिक्स तक, एक आम आदमी की जिंदगी

Rajesh Budhalakoti
1 year ago
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budhlakoti ji
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एक तो गर्मी का मौसम और जीवन का चौथा प्रहर। जनाब काटे नहीं कटे ये रतियाँ, बीते नहीं बीते ये दिन। उम्र का तकाजा रात देर से आँख लगना और सुबह सवेरे ही खुल जाना, यानि वैसे ही ये चौबीस घंटे कैसे कटे कैसे कटे कर कटते हैं उस पर देर से सोना जल्दी उठना दुखदायी होता है, कभी-कभी तो रश्क होने लगता है उनसे जो सुबह आठ नौ बजे शय्या छोड़ते हैं, फिर नहाना धोना नाश्ता, उनका तो आधा दिन यू ही पास हो जाता है।

यहां आधा दिन गुजारने को क्या क्या बेतुके काम कराने पड़ते हैं। पता होता है के पानी तो अपने समय से ही आएगा पर बार बार टुल्लू चलाकर देखना के पानी आया या नहीं। बाहर रखे गमलों को बार बार चेक कर उन्हें पानी से सरोबार रखना। घूम घूम कर अखबार वाले का इंतजार। कपड़ा लेकर पहले अपनी ऑलटाइम फैवरेट ऑल्टो कार फिर स्कूटर की साफ सफाई। दोनो को बारी बारी से स्टार्ट करके देखना के कही बैटरी तो डाउन नहीं हुई। श्रीमती जी से बार बार की पूछ ताछ के कठघरिये से कुछ लाना तो नहीं, हरी सब्जी ले आऊं तपाक से जवाब मिलना के कौन सा दुकानदार सुबह साढ़े छः पर दूकान खोल कर तुम्हारा इंतजार कर रहा है तब ये अहसास होता के अभी तो बस सुबह का आगाज हुआ है, लोगो ने बेड टी का भी आनन्द पूरी तरह नहीं लिया होगा और हमने दिन भर के अधिकांश काम निपटा लिए है।

अब इंतजार नाश्ता पानी का पर अभी समय बाकी है मित्र, आधा घंटा स्नान फिर घंटे भर की पूजा उसके बाद वोही यक्ष प्रश्न नाश्ते में क्या खाओगे। चीज सैंडविच सुनकर वो भी गलती से चीज का डिब्बा नेहा ने दिया था और खूब सैंडविच उसके घर खाए तब बोल दिया, उनका वो भयंकर वाली भाव भंगिमा फिर लंबा सा भाषण, अपने खान पान संबंधी लापरवाहियों की लंबी सूची घरवाली के मुंह से, सुनते सुनते अपने को कोसने लगता के किस घड़ी में नाश्ता क्या करोगे का जवाब दीया और अपना पसंदीदा नाश्ता बता दीया।

खैर जनाब वास्तव में स्वादिष्ट नाश्ता कर मे लौट फिर वही पहुंच गया के अब क्या करू। टेलीविजन पर समाचार से शुरू कर कपिल शर्मा तक, प्राइम वीडियो से लेकर नेटफ्लिक्स के चैनल बदल बदल कर देखना शुरू किया जरा सा किसी सीरीज में मन लगा तो आवाज कम कर उसके डायलॉगो की अश्लीलता को कम करने का प्रयास किया, लेकिन आवाज वहां तक पहुंच जाती जहां पहुंचने से बचाने को वॉल्यूम कम किया था, फिर से जनाब एक लंबा सारगर्भित भाषण विषय इंसान की उम्र और अच्छी आदतें और हर डायलॉग का निशाना कौन होता ये आप समझ सकते हैं। कभी कभी स्कूल में मास्टरजी का मोरल वैल्यूज पर दिए ज्ञान की याद भी आ जाती। मन ही मन सोचता आज हर बात के उल्टे परिणाम क्यों आ रहे हैं, सुबह ही भाग्यफल देख लेना चाहिए था।

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गंदे कपड़े बाथरूम से लाकर मशीन में डाल मशीन भी चला दी कपड़े धो डाले सुखाने डाल दिए तो, पता चला के आधे कपड़े धुले हुए थे, धोबी की गठरी में जाने थे और हमने ओवरस्मार्ट बनकर दुबारा धो डाले, फिर से ज्ञानवाणी। दो सब्जी बाजार से लाने के आदेशों के तारतम्य में तुरंत बंद गोभी और बैंगन लेकर घर पहुंचा तो वोही भाग्यफल न देखकर कामों के परिणाम सामने आए बैंगन में कीड़े और बंद गोभी सड़ी निकली, अब मिली टिप्पणी इंसान के व्यवहारिक ज्ञान और बाजार से विभिन्न वस्तुएं खरीदने की कला पर। राक्षसी भोजन करने वाले सब्जी भाजी का रुप स्वरूप कैसे पहचानेंगे। यहां पर राक्षसी भोजन का तात्पर्य नॉन वेज भोजन से है और राक्षस आप समझ सकते हैं के इशारा कहां है। सही मायनों में हम कोटाबाग के भाबरिये ही निशाने पर थे! अब क्या बताए जनाब सब्जी वाले की दुकान पर खरीददारी देख सुन कर ही की, भीतर क्या है ये जानना नामुमकिन समझा, धोखा खाया और सुना, अब दोष किसे दूं? वही राशिफल देखकर जो नहीं निकला।

दिन में क्या खाओगे प्रश्न के उत्तर से बचने के लिए मैं इस कमरे से उस कमरे में भाग रहा था। जैसे ही फिर सामना हुआ वही प्रश्न “दिन में क्या खाओगे” तब याद आया कि पीली दाल और हरी सब्जी सार्वभौमिक रूप से बैलेंस्ड भोजन मानी जाती है। बनाया और खाया। तीर निशाने पर लगा, शांति ही शांति।

उसके बाद के तीन घंटे यूट्यूब पर बड़े-बड़े साधु संन्यासियों के त्याग, वैराग्य और मोक्ष वाले वीडियो देखते या भक्ति संगीत का लुत्फ लेते कटे। भीमसेन जोशी से लेकर बड़े-बड़े भक्ति संगीत के कलाकारों को सुन सुन कर मन तो कर रहा था कि तुरंत मोक्ष मिल जाए तो वाह-वाह करने से तो बच जाऊं! लेकिन जो इस संसार में आया है पूरा भोग कर जाएगा, समझे न समझे, वाह-वाह कह कर के जाएगा, वही हमने किया।

रात का तो सब सेट था। दूध कॉर्नफ्लेक्स खाकर लेटे। श्रीमतीजी अपने “दुनियादारी वाली सास भी कभी बहू थी” टाइप सीरियल्स में और हम नेटफ्लिक्स, “डार्क डिजायर”, लैपटॉप पर कान में एयर प्लग, जिंदगी सामने, बस जनाब वो पाँच घंटे रात नौ से दो, जी ली हमने जिंदगी, कोई गिला नहीं कोई शिकवा नहीं, अपनी जिंदगी प्यारी जिंदगी, कल सुबह के एक बेहतर दिन के लिए, उगते सूरज के लिए, खिलते फूलों के लिए। आमीन।

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