आयातित वस्तुओं की चमक में हमने अपने गांवो की कई परम्पराओं को शहर में भुला दिया, उनमे से एक है वातानुकूलित मोस्ट, जिसे न सिर्फ दीवार, फर्श अथवा छत में लगा कर गर्मियों और ठण्ड से बच सकते हैं, बल्कि दूसरों कई कार्यों हेतु भी उपयोग में ला सकते हैं।
अब लगता है – स्थानीय उत्पादों को प्रयोग करने का वह सुनहरा दौर फिर से आएगा।
मोस्ट, एक ऐसा साधन जो कभी गेहूं, दाल आदि सूखाने के लिए पहाड़ों में हमारे पूर्वजों द्वारा प्रयोग में लाया जाता था। आज भी गांव – घरों में इसका उपयोग किया जाता हैं लेकिन उतना नहीं।
मोस्ट की मजबूती का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि जब मैं बागेश्वर जिले के किसी गांव में भ्रमण के दौर में था तो मुझे यह मोस्ट किसी वीरान पड़े घर के आगे, कई मोसमों की मार झेल चुका था लेकिन अभी भी उसी मजबूती के साथ वही पड़ा हुआ था।
एक वक़्त था जब पहाड़ों में हाथ से बनाई जाने वाली कला को बहुत महत्व दिया जाता था और अधिकांश लोगों के लिए वही रोजगार का साधन भी था लेकिन बढ़ते पलायन की मार झेल चुके पहाड़ों से यह कला भी गायब होती गई और मॉडर्न बनने के नाम पर लोगों ने इन कलाओं को अपनी ज़िन्दगी में अपनाना छोड़ दिया।
आज फिर से लोग पहाड़ों का रुख अपना चुके है उन्हें अपनी जन्मभूमि की अहमियत का शायद अंदाजा हो चुका है और अब वह लोग पहाड़ों में ही रोजगार का साधन ढूंढने लगेंगे, तो इसी बीच अगर हम लोग फिर से अपनी पुरानी कलाओं को महत्व दे और उन्हें अपनी ज़िन्दगी में अपनाए तो एक बहुत अच्छा जरिया हमारे पहाड़ों में आमदनी का बन सकता हैं, चाहे वह घरों के दरवाजों, खिड़कियों में बनने वाली कला हो या डलिया, मोस्ट जैसी कलाकारी हो या अन्य घर में बनाई जाने वाली कलाकारी हो एक अच्छा आमदनी का साधन बन सकता है।
लेखक की अन्य पोस्ट
पोस्ट के अपडेट पाने के लिए अल्मोड़ा ऑनलाइन Whatsapp से जुड़ें
पोस्ट के अपडेट पाने के लिए अल्मोड़ा ऑनलाइन Facebook से जुड़ें