जनाब, जब भी जीवन के सफर में मुड़कर देखा तो सरकारी मकानों में रहने का सुख हमेशा याद आता है। कठघरिया में बसने के बाद जब भी प्लंबर, कारपेंटर की खोज में श्रीमती जी द्वारा दोड़ाया जाता हूँ या उनका इंतजार कर रहा होता हूँ तो वो सुनहरे दिन याद आते हैं जब हम भी राजाओं की तरह सरकारी मकान में रहा करते थे। निश्चिंत, निर्भय और निर्भीक क्या दिन थे! कभी दो कमरे के मकान में गुजारा किया तो कभी सुविधाजनक बड़ा घर। कोई देहरादून फ़ॉरेस्ट रिसर्च संस्थान के चीड़ देवदार के पेड़ों के बीच था तो कहीं से पवित्र गंगा नदी मात्र कुछ कदम दूर और शिमला प्रवास में तो मुख्यमंत्री राजा वीर भद्र सिंह के नजदीकी पड़ोसी, सामने धोला धार पर्वतों की श्रृंखला। यानी नौकरी और सेवा निवृत्ति का अधिकतर समय सरकारी आवास में ही कटा…।
जनाब, क्या दिन थे! जैसे चाहो रहो जहाँ चाहो कील ठोको, कैलेंडर टाको, फोटो लगाओ… चारपाई चाहे उत्तर करो या दक्षिण कोई मनाही नहीं… दो अदद कुर्सी एक मेज चाहे इस कमरे में रखो चाहे घसीटकर दूसरे में कोई कहने वाला नहीं… साल में एक बार सरकारी पुताई, दो साल में एक बार पेंट, नल खराब शिकायत दर्ज करा दो प्लंबर हाजिर, बिजली खराब फोन करो आदमी हाजिर… न हाय हाय न किच किच… न मोल तोल न कोई सामान लाने का झंझट… अब याद आ रहे हैं मित्रो वो सुनहरे दिन। बस एक ही मलाल रहता था के अपना कोई आशियाना नहीं…
अब वो भी हो गया… शिमला प्रवास के दौरान जोड़-तोड़कर ठेके में हमने भी मकान बनवाया और अब लग भाग चार साल से निवास भी कर रहे हैं। लेकिन जनाब, कोई दिन ऐसा नहीं बीता होगा जब प्लंबर, बिजली वाले भैया ने हमारा चैन खराब न किया हो…।
शुरु शुरु में जब तक ठेकेदार की पेमेंट बांकी थी वो साहब – साहब कहकर आगे पीछे घूमता था, कोई भी काम हो तुरंत हाजिर, समस्या दूर, ऐसा लगता था के हल्द्वानी में हमारे सुख दुख का एक मात्र साथी यही है और, ईश्वर ने ठेकेदार के रूप में भाई सरीखा इंसान मेरी जिंदगी में भेज दिया। इसी मुगालते में हमने ठेकेदार की पूरी पेमेंट कर दी लेकिन पूरी पेमेंट मिलने के बाद अब ठेकेदार ने हमारा फोन उठाना भी छोड़ दिया, रास्ते में कभी दिखे तो नज़रे मिलाना छोड़ दिया। अब हमारे पास उन्हें कोसते रहने के सिवाय और कोई चारा नहीं रहा…।
ईधर श्रीमती जी का भवन निर्माण ज्ञान धीरे धीरे रंग दिखाने लग रहा है और वो हमारे भवन में त्रुटियां निकालने का कोई भी अवसर नहीं चूकती…। ठीक नाश्ता करते समय आपको सूचित किया जाएगा के बाथरूम का नल लीक कर रहा है और दिन के खाने से पहले टॉयलेट चोक होने का समाचार आप तक पहुंचेगा। कभी जब आपका मूड बहुत बड़िया हो, आप किसी पुराने मित्र के साथ बिताये यादगार पल अपनी श्रीमती जी के साथ साझा करने का मन बना रहे हो और अचानक बीच में मोहन भट्ट जी का नया बना मकान आ जाय…।
उस मकान को बनाने में भट्ट जी द्वारा की गयी मेहनत, उनका भवन निर्माण कार्यों के प्रति समर्पण, करीने से लगी एक एक ईट की तारीफ़, लकड़ी का खूबसूरत काम, टाइल्स… नल… वॉशिंग मशीन की जगह… बड़े बड़े बाथ रूम… कमरे और बहुत कुछ…। तो आप चुप चाप सुन उस शाम को कोस रहे होंगे जब श्रीमती जी के संग भट्ट जी के घर जाना हुआ था, जहाँ उन्होंने एक एक कोने का निरीक्षण कर सारे तीर अपने तरकश में जमा कर लिए जो गाहे बगाहे मुझ पर छोड़े जाने हैं। कभी किसी मकान का भव्य गेट, खूबसूरत वास्तु शिल्प, घेर बाड़ या अन्य कुछ भी कभी भी हमारे घर में एकतरफा बहस का कारण बन सकते हैं जो मेरी आरामदायक जिंदगी में ज्वार-भाटा लाने को काफी है…। मेरी ठेकेदार जी से काम न करा पाने की क्षमता और बने या बन रहे घरों के मुखियाओं की सूझ-बूझ विषय अब हम मियाँ-बीवी की सामान्य वार्ताला प का प्रिय विषय हो गया है। बस, बदलाव के लिए कभी-कभार वो विषय परिवर्तन कर अपनी साड़ी, सहेली या स्कूल के सहयोगियों की बात कर लेती हैं।
अंत में एक अंग्रेज़ी कहावत है – “Fools build houses and wise men live in them.” “मूर्ख (मेरे जैसा) मकान बनवाता है और बुद्धिमान उसमें रहा करते हैं।”