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आइये चलते हैं मेरे स्कूल की सैर पर मेरे साथ, कुछ पुरानी यादें ताज़ा करने, हो सकता है इसमें आपको अपनी भी मिल जाये।
मेरे स्कूल का कैंपस इतना भव्य और सुरम्य था कि अगर आप सैर पर निकले तो आप यहाँ की प्राकृतिक सुंदरता से अभिभूत हुए बिना रह नहीं पाएंगे, बहुत ही खूबसूरत हमारा संगीत विभाग और विज्ञान विभाग, हमारा मुख्य कैंपस, चैपल हॉल, प्राइमरी स्कूल और चर्च और हमारे बहुत ही प्यारे टीचर्स और हम।
शुक्रवार को गाने की कॉपी ले जाना और भूल जाने पर दोस्तों का दो पन्ने फाड़ कर कॉपी बनाने मदद करवाना ?, वो हाथों पर जॉली लगाना, जॉली में सारे दोस्त एक गोला बनाते थे कलाई पर और उसे इंक से या स्केच कलर से भरते रहते थे, जिसकी जॉली सबसे पहले मिटती थी वो हार जाता था और टॉफ़ी खिलाता था, जॉली का खुमार इतना था कि हम घर पर भी उसमें रंग भरते रहते थे ?
और हम अपनी टीचर्स की प्लेन साड़ी देखकर एक दूसरे के साथ ताली बजाते थे की आज प्लेन साड़ी दिखी है और हम मीठा खाएंगे।
हमारे स्कूल में सीनियर्स को दीदी कहते थे और जब भी १५ अगस्त या २६ जनवरी या फिर टीचर्स डे होता था तब हम उनकी प्रैक्टिस देखा करते थे, १५ अगस्त की वो प्रभात फेरी और हमारे स्कूल की बालूशाही सब बहुत याद आता है।
हम चार दोस्त थे और सबसे धूर्त हम दोनों की जोड़ी, अब उन चारो में से सिर्फ एक से ही संपर्क में हूँ जो मेरी जोड़ीदार थी और पक्की दोस्त थी ? मेरे सभी अपराधों में बराबर की हिस्सेदार, और आप यकीं नहीं मानेंगे हम दोनों को एक हमारी पिछलग्गू दोस्त ने श्राप भी दे दिया था हमसे परेशान होकर ?।
और एक मेरी बहुत प्यारी दोस्त थी बावन सीढ़ी के पास रहती थी वो अब भी संपर्क में है, और एक थी हमारी अटल बिहारी जी की फैन और उनसे बहस करने में जो आनंद था वो कहीं नहीं, दसवीं में एक सीधी सी, प्यारी सी लड़की हमारे क्लास में आयी पर मैं उसे बहुत परेशान करती थी पर प्यार से अगर वो इसे पढ़ रही हो तो मुझे माफ़ कर देना मेरी शरारतों के लिए।
मैं थी सौरव गांगुली की फैन तो जो भी उसकी फोटो आती थी अख़बार में वो मेरी डायरी में चिपकायी जाती थी और स्कूल में हम सब गांगुली और द्रविड़ के पीछे लड़ते रहते थे।
मैं गुड़िया बनाती थी कॉपी पर ,एक दिन इंग्लिश की मैम ने देख लिया और फिर मुझे क्लास से बहार निकाल दिया था, उस समय मुझे बहुत बुरा लगा था पर आज ये यादें गुदगुदा जाती हैं।
हमारी सारी टीचर्स क्रिसमस पर या स्वतंत्रता दिवस पर सफ़ेद साड़ी पहन कर आती थी और सब बहुत खूबसूरत लगती थीं।
दसवीं के बाद सारे दोस्त बिछड़ गए, कोई स्कूल छोड़ के चला गया, कोई शहर और किसी के सब्जेक्ट अलग हो गए और हम रह गए ग्यारवीं मैं अकेले ,सच उस समय हम चारों की बहुत याद आती थी पर फिर नए दोस्त बनने शुरू हुए और मिली मुझे एक प्यारी सी दोस्त, नटखट सी, चुलबुली, खुले आसमान में पंछी जैसे उड़ने वाली, और बोलते बोलते कभी न थकने वाली, और दूसरी लाइन मैं चलती क्लास के बीचा खाना खाने वाली और फिर दोस्त जुड़ते ही गए, एक हमारी दिया मिर्ज़ा, और कुछ फर्स्ट लाइन में बैठ कर सोने वाली, सोते हम भी थे पर हम दूसरी लाइन में सोते थे, पहला पीरियड था फिजिक्स का, सर बहुत अच्छा पढ़ाते थे पर जाने कहाँ से इतनी नींद आती थी, एक तो इतनी कर्मठ थी की वो पूरी क्लास ध्यान से पढ़ती थी।
एक बार सर ने पीछे लाइन में सोती हुई लड़कियों को देखकर बोला था कि “हॉस्टल वाली लड़कियों का अच्छा हैं, स्कूल आने से दो काम हो जाते है, दोस्तों से मिलना जुलना और बैग उठाने से कंधे की एक्सरसाइज?” ये बात आज भी मुझे याद है और मैं ये लिखते हुए भी हंस रही हूँ और सर ने एक बार दोलन का प्रैक्टिकल करवाते हुए बोला था “लड़कियों ये दोलन है सावन का झूला नहीं ?” हम तब भी बहुत हँसे थे और आज भी मुझे सच में अभी भी बहुत हंसी आ रही है।
अब चले रसायन विज्ञानं की तरफ तो वहाँ भी हमारी मैम बहुत ज़्यादा प्यारी थी, और मुझसे तो यकीं मानिये एक भी केमिस्ट्री के प्रैक्टिकल का परिणाम नहीं आया, हमारी लैब में हम आग ही लगाते रहते थे पर कुछ होनहार प्रैक्टिकल को सही अंजाम तक पहुंचा देते थे पर हमसे न हो पाया न स्कूल में न कॉलेज में।
हमारा तीसरा प्यारा सब्जेक्ट गणित, हम अपने स्कूल का पहला गणित का बैच थे, और यहाँ आयी थी हमारी प्यारी और मेरी फेवरिट टीचर, जो हमें गणित पढाती थी उनके यहाँ हम ट्यूशन भी जाते थे और वह हम सबका ग्रुप बन गया था और हम जितने जितने भी थे सारे बहुत मज़े करते थे,वहां अंगूर तोड़ के खाना , मैम का प्यारा सा बेटा, जिससे हम खेलते थे ,वो बहुत ही प्यारा लगता था हम सबको ,और यहाँ मुझे मिली मेरी सबसे प्यारी दोस्त जो तब जैसी थी आज भी वैसी ही हैं, हमेशा , मेरे साथ , जिसने मुझे हंसना सिखाया और तब से आज तक वो हर कदम मेरे साथ चली है, और आज भी मेरे साथ है, ट्यूशन में और भी बहुत अच्छे दोस्त बने थे और उनमें से एक तो गायब ही हो गयी है हवा में महकने, सचिन तेंदुलकर की फैन।
और हमारी हिंदी की क्लास और इंग्लिश की क्लास जहाँ हम सारे इकट्ठे होते थे।
इस सब में मैं एक टीचर का नाम ज़रूर लेना चाहूंगी, मेरी सब साथियों की चहेती हमारी “मिस मनोरमा जोशी”, वो सिर्फ एक नाम नहीं , एक आदर्श शिक्षक की परिभाषा हैं, वो जितनी खूबसूरत हैं उससे कहीं ज़्यादा वो एक बहुत अच्छी इनसान हैं, एक ऐसा शिक्षक जो शायद फिर कभी हमें मिल पाए ,उनकी क्लास का हमें बेसब्री से इंतज़ार रहता था और आज भी हम चाहते हैं कि शायद आप हमें कहीं मिल जाये और हम आपके पैर छू कर आपका आशीर्वाद ज़रूर लेना चाहेंगे, शायद ही आप कभी इसे पढ़े पर, मैं चाहती हूँ की आप इसे पढ़े और हम सभी की ओर से हमारा ढेर सारा प्यार आप तक पहुंच पाये।
और अब चलते हैं आगे, नहीं ज़्यादा नहीं क्योंकि हमारे किस्से कभी ख़तम नहीं होंगे पर शायद आप बोर न हो जाये, अगर बोर हो तो हमारे स्कूल एक बार ज़रूर जाये,बहुत सारे खेल के मैदान भी मिलेंगे वहाँ आपको और मेरे जैसी बहुत सी छात्रायें होंगी जिनके अपने किस्से, अपनी कहानियाँ होंगी, बहुत कुछ शायद मैं नहीं लिख पायी होंगी अगर आपको याद आये तो कमेंट बॉक्स में सब अपने अपने किस्से हम सबको बताये क्या पता उन किस्सों में हम भी शामिल हो।
लड़खड़ाते कदमों से जिस स्कूल में हम १२ साल पहले आये थे अब समय हो चुका था अलविदा लेने का और हमरा फेयरवेल भी आ गया था और फिर एग्जाम की टेंशन में हम रोना भूल गए पर आज मन बहुत बहुत भारी सा लग रहा है, जैसे कल से मैं अपना स्कूल पूरा घूम आयी थी और अब फिर से जैसे फेयरवेल आ गयी है, हम नहीं जाना चाहते पर आगे बढ़ने के लिए कुछ पीछे छोड़ना ही पड़ता हैं।
बस एक ही बात कहना चाहूंगी कि मैं बहुत खुशकिस्मत हूँ कि मुझे एडम्स में पढ़ने का मौका मिला और आप लोगो का साथ मिला, आज हम सब भले ही अलग अलग हो पर हम जुड़े हैं अपनी यादों से,फेसबुक पर, व्हाट्सप्प पर, आइये फिर से जुड़ जाये अपने शहर से, अपने स्कूल से, अपने बचपन से,और चलिए अब वर्तमान में आया जाये, परिवार भी देखना है ?।
अगर मैंने किसी की भी भावनाओं को ठेस पहुँचायी हो तो क्षमा प्रार्थी हूँ।
आपको मेरा स्कूल कैसा लगा ज़रूर बताये और अपने विचार कमेंट करें।
धन्यवाद।
Hello, i am also from Almora, studied from Vivekananda intermediate college, close to your school. Happy to read about your schooling days, it reminds me mine.