बात कुछ वर्ष पुरानी है, तब अल्मोड़ा सोबन सिंह जीना कॉलेज कैंपस तब यूनिवर्सिटी नहीं बना था, इस सह–शिक्षा (Co-Education) कॉलेज में शिक्षा की मात्रा कम और सह पर ज़्यादा फोकस हुआ करता था। कुछ लोग कैंपस में इसलिए आते कि अपने प्रेमी युगल से मिल सके, कुछ इस आरज़ू में आते कि – कभी बहारें उनके हिस्से भी आएगी। कुछ ऐसे भी आते – जिन्हें बताया गया था, कि यहाँ पढ़ाई भी होती है, और जब उनका यह भ्रम दूर होता तो कॉलेज आना ही बंद कर देते। कुछ थोड़े से पढ़ाकू लोग आते तो उनका ठिकाना जगह लाइब्रेरी या क्लासरूम ही होती।
कॉलेज में प्रेम की नयी-नयी कहानियाँ बनते, देखते, सुनते, प्रेम में मदमाते युवाओं के बीच कॉलेज में नये आये एक स्टूडेंट प्रेम को भी अपनी प्रेमिका की याद आने लगी, जो तब तक कॉलेज की दहलीज़ तक नहीं पहुची थी, और इन दिनों अपने गाँव में थी, जो अल्मोडा से 15-20 किमी दूर था।
प्रेम ने अपनी प्रेमिका के गाँव जाने की सोची, और साथ के लिए अपने एक मित्र उड़ान को तैयार किया। नियत दिन प्रेम अपने मित्र उड़ान के साथ पहुँचा, अपनी प्रेयसी के गाँव। वहाँ मोबाइल नेटवर्क नहीं था, तो प्रेम ने किसी तरह अपने आने का संदेशा अपनी प्रेयसी तक भिजवाया, कुछ देर में उसकी प्रेमिका काजल – अपनी दो तीन सहेलियों के साथ घास की डलिया लेकर गाँव की पगडंडी से होते हुए गाँव के ऊँचाई में स्थित खेतों के पास पहुची, जहां प्रेम बेसब्री से उसका इंतज़ार कर रहा था।
प्रेम और काजल कब के बिछड़े हम आज कहाँ आ के मिले वाले भाव से मिले। काजल की सहेलियाँ प्रेमी युगल को स्पेस देकर आपस में चैट करने लगी। और उड़ान कुछ दूरी पर अकेले एक टीले पर जा बैठा।
खुले आसमान के नीचे सुर्ख़ मौसम ने उड़ान की उड़ान रोक दी, समय बीता, आधा घंटा – एक घंटा। उड़ान ने दूर बैठे अपनी प्रेमिका से वार्तालाप में मशगूल प्रेम को इशारों से वापस चलने का आग्रह किया। लेकिन प्रेमआसक्त मनुष्य के लिए तो समय पंख लगा कर उड़ता है, उसे घंटे भी सेकंड्स की तरह लगते हैं। उड़ान को लगा, वो कैसी बातें हैं, जो ख़त्म ही नहीं होती।
अकेले और ख़ाली बैठे उड़ान के लिए, एक अनजान गाँव में, कुछ करने के लिए नहीं था। उसे हर पल, घंटों जैसे लंबे लग रहे थे, और एक – दो घंटे गुजरे, तब उड़ान की बोरियत ग़ुस्से में बदलने लगी। उड़ान वापस चलने की व्यग्रता की तीव्रता के इशारे जैसे-जैसे बढ़ाता, प्रेम उतना ही ज़्यादा आँखों और इशारे से कुछ और देर ठहरने को गिड़गिड़ाता।
उड़ान से बार-बार व्यवधान होने पर, प्रेम के दिमाग में एक शरारत सूझी। वह उड़ान के पास आकर काजल की कुछ दूर बैठी सहेलियों की ओर इशारा करते हुए बोला, “अभी तेरी जगह रंजीत आया होता, तो इन लड़कियों में से एक-दो को तो प्रपोज कर ही देता।” रंजीत, जिसकी वो बात कर रहा था, वो ग्रुप का सबसे रंगबाज लड़का था। प्रेम का तीर निशाने में लगा था, वो उड़ान का ध्यान दूसरी ओर भटकाने में सफल रहा।
प्रेम की बात से, उड़ान का ईगो हर्ट हो चुका था। उसे लगा जो रंजीत कर सकता है, वो भी कर सकता है। अब उड़ान का ध्यान दूसरी ओर बैठी लड़कियों की ओर गया, जिनकी ओर उसने अभी तक ध्यान नहीं दिया था।
लेकिन समस्या यह थी कि उड़ान प्रेम आग्रह के किसी भी तरह के तजुर्बे से अनजान था। पर जब उसने वापस लौटने के बाद बाद में होने वाली चर्चाओं में अपने मित्रों के बीच मज़ाक बनने की कल्पना की, तो उसे बेहतर लगा बिना किसी तैयारी के ही इस जंग में कूद जाना।
किसी तरह हिम्मत जुटाकर उड़ान काजल की सहेलियों की ओर गया। अचानक बीच में कूदकर, बिना किसी भूमिका के, उसने उनमें से एक अनजान लड़की के आगे प्रेम प्रस्ताव रख दिया, जिसे उसने अभी से पहले कभी नहीं देखा था।
उसकी इस अजीब और अप्रत्याशित हरकत देखकर, उनमें से सबसे छोटी लड़की शोर मचाते हुए वापस गाँव की ओर दौड़ी, पीछे से दूसरी, और फिर वो भी, जिससे उड़ान ने दोस्ती का प्रस्ताव रखा था। अनुभवहीन उड़ान इस तरह बेआबरू होकर समझ गया कि वो रंजीत की बराबरी नहीं कर सकता। पहले आत्म अभिमान (ईगो) हर्ट हुआ था, फिर आत्म सम्मान भी छलनी हो चुका था।
काजल भी अपनी सहेलियों के जाने के बाद, गाँव में लोकलाज के डर से, घास की खाली डलिया लेकर वापस चल दी।
प्रेम और उड़ान भी किसी अनजान आशंका के भय से, गाँव की पगडंडी से होते हुए जल्द पहाड़ी से नीचे उतर वापस लौट आये, और यह क़सम खाते हुए कि – अब ऐसे कहीं नहीं जाएँगे।
इस बात को क़रीब दो हफ़्ते बीते, कॉलेज में खबर फैली कि उड़ान लड़की के चक्कर में पिटने वाला था। दो हफ़्ते पुरानी इस बात को भुला चुका उड़ान ख़ुद भी चौका! और उसके साथी भी – वह उड़ान जिसने अल्मोड़ा की कोई गली ऐसी नहीं जिसका चक्कर ना लगाया हो, लेकिन कभी किसी लड़की का चक्कर नहीं लगाया, वह पिटने वाला था, एक लड़की के चक्कर में। साथियों के लिए बात दिलचस्प थी।
उड़ान – प्रेम के पास माजरा जानने पहुँचा तो – प्रेम ने उसे बीते दिनों की घटना बतायी। दरअसल उस दिन, वापस लौटने के कुछ दिन बाद बाद उसे अपनी प्रेयसी की फिर याद सताने लगी, और उसे देखे बग़ैर रह नहीं पाया, तो इस बार अकेले, काजल के गाँव चल दिया।
इससे पहले कि वह गाँव की पगडंडी में चढ़ता, किसी ने उसे पहचान लिया और चिल्लाया – “ये ही था ना – पिछली बार, इसके साथ एक और भी था!” इसके बाद गाँव के कुछ और लोग इकट्ठा हो गये, उनमे से एक ने प्रेम का गला पकड़ लिया। मामले की गंभीरता समझ, प्रेम ने एक झटके से ख़ुद को छुड़ाकर वहाँ से अल्मोड़ा की रोड में दौड़ लगा दी, उसके पीछे गाँव के लोग दौड़े।
प्रेम को लगा कि – अब बचना मुश्किल है, सारे इष्ट देव, गोलू देवता, भैरव देव याद आ गये, वह प्रार्थना कर रहा था – “कि भगवान बचा लो इस बार, अगली बार से कभी यहाँ नहीं आऊँगा।” पीछे से लोग पत्थर – डंडे फेकते हुए लोग उसके पीछे दौड़ रहे थे। उसके आँखों के आगे अंधेरा छा रहा था, गाँव के लोग क़रीब होते जा रहे थे।
इससे पहले कि वो लोग प्रेम को पकड़ पाते, उसे कुछ दूर अल्मोड़ा को जाता एक ट्रक दिखा। अपनी जान बचाने के लिए, उसने अपनी गति और बड़ा दी, अपनी ज़िंदगी में कभी इतना तेज नहीं भागा था जितना उस दिन भागा। तेज़ी से भागकर उस ट्रक के पीछे लटक गया। कुछ किलोमीटर बाद जब उसे होश आया था, जीभ बाहर लटक रही थी और कलेजा मुँह को आ गया था।
जैसे तैसे जान बचाने के बाद, उसने अपनी इस दास्तान सुनाते हुए उड़ान को यह कहकर लपेट लिया था, “अगर तू भी साथ होता तो फिर मेरा और तेरा बचना मुश्किल था।” इस घटना के बाद उड़ान का नाम भी सम्मान के साथ दिलजले आशिक़ों की फाइल में दर्ज हुआ। लेकिन पता नहीं क्यों उसने कॉलेज आना बंद कर दिया।