यूँ तो दोस्तों अपने दैनिक जीवन में हम अक्सर देखते सुनते हैं कि
फलाने के प्यार में ढिमकाने नें ऐसी प्रतिक्रिया दी, दोनों नें बाद में शादी कर ली, अलग हो गए, प्रेमी को बुरी तरह पिटवा दिया या प्रेमिका के चेहरे को खराब कर दिया, खुद अपनी जानें ले ली या आॅनर किलिंग के शिकार हो गए, आदि-2.. पर सबसे अच्छी बात यह कि बावजूद इसके यह सिलसिला बदस्तूर जारी था, है और रहेगा।
आज किसी के प्यार में डूबे ऐसे ही एक शख्सियत की दास्तां जिसने प्यार में ठुकरा दिये जाने के बाद पूरे शहर भर को प्यार से ऐसे भर दिया जैसे कि उस ठुकराए प्यार नें उसे जिन्दा कर दिया हो और इस तरह वह ठुकराए प्यार की बदौलत पूरे शहर भर में वह छा गया। इस प्यार के पंछी नें अपने प्यार की यादों के रोमांस के सहारे अपने जीवन में रोमांच भर लिया और रोमांचक कारनामों के बहानें रोमांस से इतर इतनी ऊँची उड़ान भरी कि सारा शहर उसे ‘टैनी वर्मा‘ के नाम से जानने लगा।
वही 90 के दशक में हमारी किशोरावस्था के समय इनसे पहली मुलाकात हुई जब ओएसडी Almora अल्मोड़ा की ओर से पिंडारी कफनी ग्लेशियर पथारोहण अभियान में हम दोनों साथ में थे। उनके ही मुताबिक यह उन्हीं दिनों की बात है जब वह किसी के प्रेम में पड़ चुके थे।
सीधे साधे, दुबले पतले, मलमली पर पत्ली आवाज़ और सबके साथ घुलमिल जाने वाले संजय वर्मा उर्फ टैनी उस अभियान में सबसे उत्साही साथियों में एक थे और अपने सामान के साथ एक रशियन मैकेनिकल कैमरा विद ए बिग फ्लैश लेकर आए अलैदा बात कि उसकी सैटिंग बहुत देर तक किसी के समझ न आई।जब तक समझ आई कफनी ग्लेशियर के आगे ग्रुप फोटो लेने में बोल्डर में रख ऑटोमैटिक (Auto) मोड में डाल वहां से ऐसे कूदे कि उसका फीता उनके ही पैर में उलझकर खुद ऐसा कूदा कि टैनी भाई की – उरीईईई…उरीईईईई… निकल पड़ी और कैमरे नें उससे पहले तक भी फोटो दी नी दी पता नहीं।
इसके अगले ही साल एक बार फिर ओएसडी अल्मोड़ा की तरफ़ से पहले कुमाऊॅ महोत्सव में पिथौरागढ़ जाना हुआ तो एक बार हम फिर साथ थे जिसके बारे में उन्हें आज तक यह याद है कि उसमें हमने सात दिन की ट्रेनिंग प्रसिद्ध ऐवरेस्टर लवराज धर्मसत्तू के अंडर की थी जो कि तीन बार के ऐवरेस्ट विजेता हैं। दूसरी बात उन्हें जो याद है कि वह मेरे साथ मेरी बहन के घर टकाना रोड पर रुके थे यह बात अलग हुई कि इवेंट की पहली रात हमारे एक साथी को स्थानीय लड़कों ने बुरी तरह पीट दिया और मैंनें अपने साथियों के साथ इसके ख़िलाफ़ खेल बहिष्कार की अगवानी की, पर सुबह अपने साथियों को इवेंट में भाग लेते देखा फिर भी उस पीटे गए साथी के साथ मैं और टैनी भाई अंत तक खड़े रहे थे।
इसके बाद शहर में कभी-2 मुलाकातें होती घर आने पर इनके साथ तो बड़े स्मार्ट नज़र आते, काले कपड़े, काले बाल बच्चन स्टाइल में और क्लीन शेव, हाथों में कड़े डाले बड़े डिस्पिलेन में पर इतना पता था कि सुनार का काम करते या सीखते थे। बड़े उत्साह से मिलते अपनी पतली भर्राई आवाज में हसँते खिलखिलाते हुए जोर2 से बात करते लेकिन सिर्फ टूर की यादें ताजा करते और फोटूओं की बातें करते।
इसके कुछ साल बाद जब मैं घर वापस आ गया तब भी मिले और अभी भी वह पहले की तरह जवान, अनुशासित और बिल्कुल वैसे ही जैसे बरसों पहले मिले थे और वही काले बाल,काले कपड़े और हर समय जल्दबाजी में। पर यह बात सबसे अच्छी यह रही थी कि उन्होंनें भी अभी तक अपनी साहसिक यात्राऐं जारी रखी थी।
एक सुबह अचानक हाफ़ पैंट, टी शर्ट पहने मिल गए बोले सुबह पाँच बजे पहुँच जाता हूँ, खेलने से मतलब है – कुछ भी मिल जाए हॉकी, फुटबाल, क्रिकेट सब खेल लेता हूँ, यह न मिले तो फील्ड में दौड़ना तो अपने हाथ में है। सुनकर मैं हैरान रह गया कि बगैर किसी लक्ष्य के यह आदमी सिर्फ फिटनेस के लिए ऐसा दीवाना है।
उसी साल एक बार फिर पन्द्रह अगस्त को सजे धजे ट्रैक सूट में मैराथन दौड़ने के लिए मिल गए और फिर वाॅलिन्टियर के रूप में सारा दिन स्टेडियम में और फिर उसी साल की हुक्का क्लब रामलीला में वाॅलिन्टियर के रूप में रामलीला ख़त्म होने तक।यह सिलसिला करीब पाँच साल चला इसी तरह यूँ ही।
कुछ समय बाद हमारे मित्रवर आलोक की शादी में एक बार फिर हम साथ थे और हमारी पार्टी पूरे शबाब पर थी ऐसे में न पीने और न पिलाने वाले टैनी भाई फिर भी पूरे काॅन्फिडेंस के साथ हमारे साथ देर रात तक बने रहे थे।
उस रात पार्टी खत्म होने के बाद न जाने क्यों वह मुझे लेकर एक कोनें में बैठकर अलसुबह तक अपने प्यार का अफ्साना कहते रहे उसकी एक एक बारीकी और मुलाकातों के बारे में जानकारियां देते रहे और उस रात अपने सारे राज़ मेरे हवाले कर दिए।
उसके बाद तो वो लगातार वो हमारी आखों के सामने रहे गाहे बगाहे हमें भी लगा कि उनकी प्रेम कहानी पूरी होने में कुछ अपना भी योगदान हो जाय तो हम भी उन्हें कई जानकारियां दे दिया करते पर उन्हें इसकी कोई जल्द नहीं रहती बजाए अपने ऐडवेंचर में खोए रहने के।
होते2 इक्कीसवीं सदी के पहले दशक में टैनी वर्मा नाम का शख्स ऐसा छाया के हर एक के जुबान में छा गया।कोई भी जलसा इनके डांस परफाॅरमेंस.. “लो मैं आया..” ऋतिक रौशन वाला डांस.. आंखों में काला चश्मा और कमर में बधी हुई बांसुरी के बगैर शुरु या खत्म न होता।
शहर के हर एक प्रोग्राम में वाॅलिन्टियर रहने के अलावा अब उनके गैटअप में खासा चेंज आ चुका था काले कपड़े,जींस के ऊपर लाल सुर्ख हाफ या फुल जैकेट, कभी लाॅंग कोट तो हाथों में हाफ/फुल दस्तानें, गले में मोटी चेन,कडे़,गमबूट,पीठ पर रुकसैक के साथ बधी चटाई,लम्बी छाता,कभी तो आइस ऐक्स तक,सर पर पी कैप आदि – 2।
सच कहू तो पहली बार इस हालत में देखने पर मुझे लगा कि टैनी भाई हिल चुका है पर अकेला हमको मिलता न था और किसी भी जलसे में अपने फैंस से घिरा मिलता। और न ही उसे हमसे मिलने की फुर्सत होती, हमेशा बिजी विदाउट वर्क।
इसके बाद उसने अपनी खरीदी गई हीरो होंडा बाइक पर स्टंट व नये-2 करतब दिखाने शुरु कर दिए और पागलपन की हद तक पहुचँ गया प्रैक्टिस के दौरान कई बार गिरता पड़ता चोट खाता लेकिन फिर भी वही जुनून कायम रहता।
यहाँ तक कि कई बार वह असली जलसों के दौरान भी गिरकर घायल हो चुका होता तो पब्लिक की ओर देखकर पतली आवाज़ में पूरे जोर से चिल्लाता ..”कोई आगे नी आऐगा यह मेरा मामला है..मैं अपने आप उठूंगा..!” और सी सी कह कर बाइक उठाने लगता।
और यह सिलसिला भी कई साल चला और साल में कई किलो का बोझ लिए पहाड़ का एक एक कोना पैदल नाप लिया कभी किसी के साथ तो कभी अकेले ही,कहीं भी कभी भी टेंट गाड़ लिया, बाकि समय अपनी सुनार की दुकान में काफी समय बैठ भी लिए पर उड़ते बादल और रमते जोगी का क्या कहां जा लगे, सो मन न लगा।
फिर आया 2007 और टैनी भाई के प्यार की शादी हुई और टैनी भाई ने बाकी अपने अंतिम परफॉर्मेंस में एक डांस जोड़ा.. “नायक नही खलनायक हूं मैं..” और उसके बाद लगातार तीन साल ऑल इंडिया बाइक टूर पे निकल गए और हजारों किमी नाप दिया।वहां से बच के वापस आए तो कभी नंदा राजजात तो कभी अमरनाथ।
अब टैनी भाई की पीठ पर हमेशा दस पंद्रह किलो का वजन दिखता और सर पर हैडलाइट भी, यानि वो हमेशा तैयार मिलता कही भी कभी भी चल पड़ने को।बता रहा था कि गोवा में एक शाम घूमते हुए कोई लौंडा टैनी दा कह कर आवाज लगाने लगा जो कि लोकल खत्यारी का निकला।
कुल मिलाकर हमारा यह दोस्त फॉरेस्ट गंप की मानिंद सालों से दौड़ते भागते चला जा रहा है जिंदगी से बिना शिकवे शिकायत के।हमने न तो गंप देखा न लालसिंह, हमारे लिए तो गंप भी यही और चड्डा भी यही।
और हां अगली बार अल्मोड़ा के अलावा यदि किसी शाम मुखानी में बैठा चाय पीता मिल जाय या चौराहे से पीली कोठी के बीच कंधो में बोझ लिए,जिसे वह अपनी फिटनेस का राज बताता है,आंखो या पीकैप के ऊपर काला चश्मा लगाए लमालम चलता हुआ मिल जाए तो समझ जाइए कि यही है हमारा प्यारा क्लीनसेव्ड फॉरेस्ट गंप जिसने अपने प्यार में लोगों को ‘वर्मा टैनी’ होना सिखाया अपनी जिंदगी के तजुर्बे से।
कुछ अन्य रचनाएँ।